प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू कर दिया गया है जिसकी वजह से शरणार्थियों में काफ़ी ख़ुशी का माहौल बना हुआ है। कई जगहों पर आतिशबाज़ी चल रही है तो वहीं कई जगहों पर असमंजस बना हुआ है। लोग सोचने के लिए मजबूर है कि इस नियम को लागू होने के बाद मुस्लिम धर्म के शरणार्थियों के साथ सरकार का कैसा व्यवहार होगा। विपक्षी दल का आरोप है कि चुनाव से पहले सरकार जानबूझकर इस क़ानून को लागू करने का प्रयास किया है ताकि चुनाव में सरकार को धार्मिक रूप से फ़ायदा मिल सके। वही कुछ लोगों का मानना है कि सरकार पहले से ही इस नियम को लागू करने के लिए बिलकुल तैयार थी परंतु सही समय का इंतज़ार कर रही थी ।इन सभी चर्चाओं के बीच आपने नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के बारे में सुना होगा। यह एक बहुत ही विवादित विषय है जो हमारे देश में गहरे विचार-विमर्श को उत्पन्न कर रहा है। इस नए कानून के बारे में सही से समझ पाना जरूरी है, इसलिए हम इसके विषय में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझेंगे।
CAA का पूरा नाम भारतीय नागरिकता संशोधन कानून है। यह कानून 2019 में पारित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य है धार्मिक निर्धारितता के आधार पर विदेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना। इस कानून के तहत, अगर कोई हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई धार्मिक विस्तार से बांग्लादेश, पाकिस्तान, या अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आया है, तो उसे भारतीय नागरिकता दी जा सकती है।
इस कानून का मुद्दा विवादित है क्योंकि इसे कुछ लोग धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान करने का प्रयास मानते हैं, जबकि दूसरे इसे धार्मिक भेदभाव का एक रूप मानते हैं। इसके चलते विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों में विरोध की आवाज़ उठी है।कुछ लोगों का मानना है कि CAA के माध्यम से असम के आदिवासी समुदायों की आशाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि इस कानून के चलते भारत में आधिकारिक रूप से शरणार्थियों की संख्या कम होगी और देश के अत्यधिक भारी बोझ को कम किया जा सकेगा।हालांकि, दूसरी ओर से कुछ विपक्षी दल और समुदाय इसे धार्मिक भेदभाव के साथ जोड़कर इसके विरोध में हैं। उनका मानना है कि इस कानून से मानवाधिकारों की उल्लंघन होगी और समाज में भेदभाव और आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा।